सूर्य उपासना का लोक पर्व छठ अब विश्व व्यापी बन चुका है। शय्या का त्याग और निर्जल व्रत इस कठिन तपस्या के स्वरूप को बताते हैं। बिना किसी मंत्रोच्चार के मौन आत्म-निवेदन। किसी नदी, तालाब या सरोवर के जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देना, उसकी लालिमा को नाक से लेकर अपनी मांग तक सिंदूर से सजा लेना और अरघ के गीत गाते हुए सभी के कुशल-क्षेम के लिए सूर्य को मनाता हुआ विशाल जन समूह पूरे विश्व को सनातन दर्शन का यह संदेश देता है कि अस्त होना और उगना सृष्टि की प्रक्रिया है। यह कभी न समाप्त होने वाला सिलसिला है। इतना गूढ़ दर्शन अपने अंतर में छिपाए यह लोक पर्व सूर्य उपासना का महापर्व बन गया है। हर नदी, तालाब, सरोवर के किनारे माला-फूल के साथ-साथ चाय-पान की अस्थायी दुकानें मेले में आए श्रद्धालुओं के लिए खुल जाती हैं। मिट्टी के कलश और दीये बेचने वाली बूढ़ी काकी की दुकान भी सज उठती है। बैंड बाजे के साथ अपनी मनौती पूरी करने आई व्रती महिलाओं की नाक से मांग तक सिंदूर की चटक नारंगी आभा चतुर्दिक फैल जाती है। अरघ के गीत गाती महिलाएं दीप नैवेद्य से भरा सूप लिए जल में उतरकर खड़ी हो जाती हैं और उनके साथ ही जल में उतरती है लोक की आस्था । लाउडस्पीकरों से माहौल में स्वर लहरियां तैरने लगती हैं -
उजे केरवा जे फरेला घवद से, ओपर सुगा मेड़राय,
उजे खबरी जनइबो आदित से, सुगा देले जुठिआए,
उजे मरबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए,
उजे सुगनी जे रोवेली वियोग से, आदित होई न सहाय !
मैं चौंक उठता हूं। इतना कारुणिक और दुखांत गीत छठी मइया या सूर्यदेव का कैसे हो सकता है, जो प्रणियों की रक्षा, आरोग्यता व आयु प्रदान करते हैं?
षष्ठी तिथि मातृका शक्ति की तिथि है, और यह देवी समस्त प्राणियों की रक्षिका हैं। बुद्धि पूछती है, क्या लोक इतना निष्ठुर है कि अपनों की मंगल कामना करते हुए प्रकृति के खूबसूरत प्राणियों की हत्या भी कर सकता है? तोता तो बहुत ही सुंदर पक्षी है। ऐसे सुंदर पक्षी द्वारा छठी मैया को नैवेद्य में चढ़ाने के लिए संजोए गए केले को जूठा कर देने मात्र से उसे धनुष-बाण से मार दिया जाता है? सुगनी, यानी तोते की पत्नी वियोग में रोते हुए सूर्य देवता से उसे जीवित कर देने की प्रार्थना करती है।
इस गीत को गुनगुनाते हुए भी स्वर उदास हो जाता है। वैसे ही, जैसे संसार को ऊर्जा देने वाले सूर्य के अस्त होने पर हर प्राणी का मन उदास हो जाता है। संपूर्ण जगत को सूर्योदय की प्रतीक्षा रहती है। जीवन इसी गति और स्थिरता का नाम है। सूर्यास्त का अर्थ भी जीवन का स्थिर हो जाना है और जीवन को गति तभी मिलती है, जब दैवीय शक्तियां सहायता करती हैं।
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